गाँव की मिट्टीलेखनी प्रतियोगिता -24-Nov-2021
अपने गांव की मिट्टी को कोई कैसे भला भूल सकता है.। रोशन को विदेश मे बसे हुए चालीस वर्ष बीत गए थे।
मगर ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है जब वो अपने बच्चों से अपने गाँव के संस्कार और संस्कृती के बारे मे बात नहीं करता था।
रोशन गाँव मे पला बढा था। हमेशा अपने माँ बाबा से कहा करता मै पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बन जाऊँगा।
तब हम दोनों खेती करके घूम सारा फल अनाज उगाया करेंगे।
अपने माँ बाबा को नित्य मेहनत करते हुआ देखा करता था। वो रोज सुबह अपने बाबा के साथ खेत मे जाकर हाथ बटायाँ करता था। गाय को नहलाना ,दूध दोहना ,चारा खिलाना। घर मे माँ के साथ गाय के गोबर से गोएढे बनाने मे मदद कर दिया करता था। घर को मिट्टी से लिपना । फिर अपनी माँ के साथ बैठकर खाट पर सुसता लेता था ।
उसकी माँ उसे बोला भी करती थी , "तू तो बिटवा पढाई मे ध्यान लगाकर पढा कर । काम का क्या ई तो हम होले होले कर ही लेबे। "
लेकिन रोशन कहता माँ हम सारा दिन थोड़े ही पढते है । हमका तोहार और बाबा मदद करना बहुते अच्छा लगता है।
रोशन को अपनी माँ के हाथो से बने गुड़ की रोटी ,छाछ बहुत पसंद थी। ज्यादा तो पैसा नहीं था रोशन के पिता के पास , मगर घर मे दो गाय होने की वजह से दूध ,दही , छाछ , मक्खन की कोई कमी नही थी। शत्तु पीना , यही सब साधारण खाना भी बहुत स्वाद लगता था।
रोशन के माँ बाबा का स्वास्थ्य ठीक नही रहता था। रोशन अपने माँ बाबा का ख्याल भी रखता और समय मिलते ही अपनी पढाई मे जी जान लगाकर किया करता था।
जब पढने मे मन नहीं लगता खेतो मे जाकर अमिया के पेड़ो पर डले झूले पर झूलते हुए पढता था।
कोयल की कूक सुनकर मन अतिप्रसन्न हो जाता।
रोशन अपने माँ बाबा की इकलौता संतान था। वक्त बीतने लगा और एकदिन ऐसा वक्त आया जब उसे अपने माँ बाप को छोड़कर पढने के लिए दिल्ली जाना पड़ा । मेधावी छात्र होने की वजह से उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जीवन मे आगे बढता चला गया। एक दिन उसको खुशखबरी मिलती है इसकी विदेश मे नौकरी लग गई है । वो गाँव लौटकर अपने माँ बाबा से आकर मिलता है । वो उन्हें बहुत आशीष देकर विदा कर देते है। एक वर्ष बाद वो विदेश से लौटकर आता है अम्मा ...बाबा...पूरा गाँव बहुत हर्षित होता है देखकर उसकी उन्नति । वो अपने साथ अपने माँ बाबा को भी ले जाता है। वही जाकर विदेशी लड़की से शादी कर लेता है। रिनी रोशन के माँ बाप की बहुत सेवा किया करती थी।
रोशन के माँ बाबा ,बेटा बहु नाती - नातिन का सुख भोगकर स्वर्गवास हो जाते है ।
रोशन को अपने माँ बाबा और की बहुत याद सताने लगी थी। अब उसकी उम्र नहीं थी कि वो लौटकर भारत जाए और अपनी गाँव की मिट्टी को सिर पर तिलक लगाएँ।
अब रोशन रिटायर्ड हो चुका था। खाली बैठकर अपने गाँव को बहुत मिस करने लगा था।
रोशन के बच्चे ऋषभ और रघु बहुत ध्यान से अपने पिता की बातें सुनते थे और उनकी भावनाओं को समझते भी थी। और अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे थे।
आज रोशन का जन्मदिन है , घर मे खुशियो का माहौल बना हुआ है। रोशन के बच्चे ऋषभ और रघु
उसे घूमाने ले जाने के बहाने बाहर ले जाते है और आँखो मे पट्टी बाँध देते है। सरप्राइज !! कहते हुए आँखो की पट्टी खोल देते है, सामने देखकर रोशन के आँखो से खुशी के आँसु बहने लग जाते है ।
असल मे ऋषभ और रघु ने एक अकड़ की जमीन मे फार्म हाऊस मे पूरे गाँव का माहौल बना दिया था। फार्म हाऊस पर लहलहाते सरसो के पेड़ , रँग बिरँगे फूलो की क्यारियाँ , जमीन के अंदर उगने वाली सब्जियाँ , पेड़ो पर लटकते साग फल देखकर रोशन के मन द्रवित हो गया।
ऋषभ और रघु दोनो अपने पापा का हाथ पकड़कर
बोलते है चले पापा गाँव की ओर ...।
शिल्पा मोदी
Seema Priyadarshini sahay
25-Nov-2021 11:08 AM
बहुत खूबसूरत
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रतन कुमार
25-Nov-2021 11:07 AM
बहुत खूब
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Gunjan Kamal
24-Nov-2021 11:42 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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